उन्नाव रेप केस में कुलदीप सेंगर को राहत, उम्रकैद पर रोक, सशर्त जमानत
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दिल्ली हाई कोर्ट ने उन्नाव रेप केस में कुलदीप सिंह सेंगर की उम्रकैद की सजा पर अपील लंबित रहने तक रोक लगाई।
कोर्ट ने 15 लाख रुपये के बॉन्ड पर सशर्त जमानत दी, पीड़िता से संपर्क और नजदीक जाने पर सख्त प्रतिबंध लगाया।
शर्तों के उल्लंघन पर जमानत रद्द होगी, रेप और हिरासत मौत मामलों की अपीलें अभी विचाराधीन हैं।
नई दिल्ली | 24 दिसंबर 2025 उन्नाव रेप केस में दिल्ली हाई कोर्ट ने एक अहम आदेश पारित करते हुए पूर्व विधायक और बीजेपी से निष्कासित नेता कुलदीप सिंह सेंगर की उम्रकैद की सजा पर रोक लगा दी है। कोर्ट ने उनकी अपील के अंतिम निपटारे तक उन्हें सशर्त जमानत पर रिहा करने का निर्देश दिया है। यह फैसला मंगलवार को जस्टिस सुब्रमण्यम प्रसाद और जस्टिस हरीश वैद्यनाथन शंकर की खंडपीठ ने सुनाया।
हाई कोर्ट ने सेंगर को 15 लाख रुपये के पर्सनल बॉन्ड और इतनी ही राशि की तीन जमानतें जमा करने का आदेश दिया। अदालत ने स्पष्ट किया कि यह राहत केवल अस्थायी है और अपील पर अंतिम निर्णय आने तक ही प्रभावी रहेगी। साथ ही, अदालत ने कई सख्त शर्तें भी लगाईं ताकि पीड़िता की सुरक्षा और न्यायिक प्रक्रिया की निष्पक्षता सुनिश्चित की जा सके।
कोर्ट ने सेंगर को पीड़िता के घर से पांच किलोमीटर के दायरे में प्रवेश करने से रोक दिया है। इसके अलावा, उन्हें पीड़िता या उसकी मां को किसी भी प्रकार से धमकाने, संपर्क करने या प्रभावित करने की सख्त मनाही की गई है। बेंच ने चेतावनी दी कि किसी भी शर्त का उल्लंघन होने पर जमानत तत्काल रद्द कर दी जाएगी।
यह आदेश दिसंबर 2019 में ट्रायल कोर्ट द्वारा सुनाई गई उस सजा पर रोक लगाता है, जिसमें सेंगर को वर्ष 2017 में एक नाबालिग लड़की के अपहरण और दुष्कर्म का दोषी ठहराते हुए उम्रकैद दी गई थी। सेंगर ने इस फैसले को दिल्ली हाई कोर्ट में चुनौती दी थी, जिस पर सुनवाई अभी लंबित है।
मामले की संवेदनशीलता को देखते हुए, सुप्रीम कोर्ट के निर्देश पर 1 अगस्त 2019 को यह केस उत्तर प्रदेश से दिल्ली स्थानांतरित किया गया था। उस समय गवाहों को डराने-धमकाने और जांच व ट्रायल में कथित खामियों को लेकर गंभीर चिंताएं जताई गई थीं, जिसके बाद सर्वोच्च न्यायालय को हस्तक्षेप करना पड़ा।
गौरतलब है कि रेप केस के अलावा, कुलदीप सिंह सेंगर पीड़िता के पिता की हिरासत में मौत से जुड़े एक अलग मामले में भी 10 साल की सजा काट रहे हैं। उस मामले में उनकी अपील भी दिल्ली हाई कोर्ट में विचाराधीन है। सेंगर ने वहां भी यह तर्क दिया है कि वह पहले ही लंबा समय जेल में बिता चुके हैं और उन्हें सजा पर रोक दी जाए।
हाई कोर्ट का यह फैसला एक ओर कानूनी प्रक्रिया के संतुलन को दर्शाता है, वहीं दूसरी ओर पीड़िता की सुरक्षा को सर्वोपरि रखते हुए सख्त शर्तों के साथ राहत प्रदान करता है। अब सभी की निगाहें सेंगर की अपील पर आने वाले अंतिम निर्णय पर टिकी हैं।